सर्दियों की सुबहों को
मेरा बिस्तर मुझे उठने ही नहीं देता
जकड़ कर रखता है
रज़ाइयां मन मन भर की लगती हैं
और बाहर की ठंडी हवा
मेरा बिस्तर मुझे उठने ही नहीं देता
जकड़ कर रखता है
रज़ाइयां मन मन भर की लगती हैं
और बाहर की ठंडी हवा
बची हुई सारी कसर निकाल देती है
नतीजन, सर्दियों की सुबहों को मैं
बिस्तर से उठ ही नहीं पाती
कभी कभी तो,
दोपहर हो जाने तक!
बिस्तर से उठ ही नहीं पाती
कभी कभी तो,
दोपहर हो जाने तक!
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