पूरा बरस बीत गया उस बात को
जब मैंने कुछ संजीदगी से
जिंदगी का एक सबक
तुम्हे सौंप दिया था
जब मैंने कुछ संजीदगी से
जिंदगी का एक सबक
तुम्हे सौंप दिया था
तुम परेशान सी हो गयी थी
तुम्हें देख मेरा मन भी
तुम्हें देख मेरा मन भी
विचलित हो उठा था
पर मेरे सांत्वना देने से
ज़िन्दगी का वह महत्वपूर्ण सबक
खो न जाये,
ये सोच मैंने कुछ नहीं कहा
पर मेरे सांत्वना देने से
ज़िन्दगी का वह महत्वपूर्ण सबक
खो न जाये,
ये सोच मैंने कुछ नहीं कहा
तुमने भी जाने क्या सोच कर
मुझ से कुछ न कहा
लेकिन अपनी नाराज़गी
कविताओं में पिरो दी
मुझ से कुछ न कहा
लेकिन अपनी नाराज़गी
कविताओं में पिरो दी
मैं तब भी चुप रही
अब दुनिया भर में
तुम्हारी कविताएँ दिखा
उस दिन की बात कहती हूँ,
पर यह बात तुम
तुम्हारी कविताएँ दिखा
उस दिन की बात कहती हूँ,
पर यह बात तुम
कैसे जान पाओगी?
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